536/2022
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
निज भविष्य जो मनुज सँवारे।
चमका है वह बनकर तारे।।
श्रम से स्वेद -सिक्त जो रहता,
परिजन उसने सदा उबारे।
परिजीवी निर्भर औरों पर,
बैठा रहता हिम्मत हारे।
करनी में विश्वास जगाए,
वह अजेय जयकार उचारे।
सीमा पर साहस से लड़ता,
अनगिनती वह अरि को मारे।
कूप खोद पीता जो पानी,
नहीं बताता जलकण खारे।
'शुभम्' काम से जी न चुराए,
सिर पर मुकुट विजय का धारे।
🪴 शुभमस्तु!
19.12.2022◆6.30 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें