540/2022
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
जीव भोगता नित्य, अक्षय फल है कर्म का।
ज्यों नभ में आदित्य,'शुभम्' रूप है धर्म का।
यौनि बदलती देह,जीव अमर अक्षय सदा।
मिलता है तव गेह, कर्मों के परिणाम से।।
यदि नर को हो ज्ञान, बुरे कर्म करता नहीं।
करें कर्म का मान, युग-युग तक अक्षय रहे।।
अक्षय अविकल नित्य,परम आत्मा एक ही।
बदले देह अपत्य, अंश जीव उसका सदा।।
नहीं कर्म पर ध्यान,अक्षय फल सब चाहते।
प्रभु का कर अपमान,छिपे आड़ में कर्मरत।
🪴 शुभमस्तु!
22.12.2022◆1.30 पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें