रविवार, 4 दिसंबर 2022

घड़ी और समय ⏰ [ अतुकान्तिका ]

 507/2022

         

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार ©

🌞 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

घड़ी

आजीवन रहती है

बस घड़ी ही,

नहीं हो पाती कभी

घड़ा,

लिंग- भेद भी नहीं होता

कभी किसी

घड़ी का।


घड़ी है

मात्र एक 

समय -सूचिका,

समय के साथ

चलना धर्म है

सुईयों का।


करोड़ों करोड़ 

घड़ियाँ संसार में,

किंतु सभी 

समय बतातीं 

अलग  -  अलग ही,

समय एक,

पर घड़ियाँ अनेक,

भूगोल अलग-अलग,

सूरज का दिनमान अलग।


सब कुछ 

समय पर निर्भर,

जन्म - मरण

जय - पराजय,

आना - जाना,

सफलता  - असफलता,

निर्माण - ध्वंश

परिवार -वंश,

राम - रावण,

श्याम या कंस,

थिरता - गतियाँ,

मतियाँ - रतियाँ,

समय के खेल।


आओ  'शुभम्' 

 समय को पहचानें,

कौन है अपना 

और कौन है बिराना,

ये भी जानें,

समय नहीं करता

क्षमा किसी को भी,

जो करे समय बरबाद,

वह कैसे हो सकता है

भला आबाद?

जो समय से चूका,

मरता है वह सदा भूखा,

श्रम का इतर नाम

समय है,

पहचानो तो

पहचान लो।


🪴शुभमस्तु !

02.12.2022◆8.15 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...