शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022

इच्छा 🧡 [ कुण्डलिया ]

555/2022

           

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✍️शब्दकार ©

🌱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

सीमा  में  शोभन लगे,इच्छाओं  का  रूप।

जो अनंत इच्छा करे,गिरे तमस   के  कूप।।

गिरे   तमस   के कूप,भूल अपने को  जाए।

भावी हो अपरूप,नहीं कुछ जग  में  भाए।।

'शुभम्' साध ले चाह,न कोई जीवन - बीमा।

गहराई  को  माप,उदधि की अपनी  सीमा।।


                          -2-

संभव इच्छा-व्योम में,उड़ना ही  शुभकार।

लौट जहाँ से आ सके,मन में सुदृढ़ विचार।।

मन में सुदृढ़ विचार,पलायन गति को छोड़े।

हो इच्छा बलवान,कदम भूतल   पर  मोड़े।।

'शुभम्' बचे अस्तित्व,न हो चिंतन में लाघव।

इच्छा  हो  साकार, फलवती तेरी   सम्भव।।


                         -3-

होती  इच्छाएँ  भली, कुटिल बुरी  भी  मीत।

पहचानें  उनको  सदा,पड़ें नहीं   विपरीत।।

पड़ें  नहीं   विपरीत, भलाई देखें    सबकी।

जन का हो उपकार,न कोसें धरती उर की।।

'शुभम्' नियंत्रण त्याग,शुभाशुभ इच्छा बोती।

धी पछताती नित्य,रुग्ण यदि लिप्सा  होती।।


                         -4-

मानव  इच्छा-दास  जो,खो देता  उर- धीर।

शांतिहीन  जीवन  मिले,चुभते रहते  तीर।।

चुभते  रहते  तीर, शुभाशुभ जान न पाता।

मारे  पाँव कुठार,न माने पितु गुरु   माता।।

'शुभम्' मानवी - देह, कर्म से होता  दानव।

इच्छाओं का  बोझ, शीश पर लादे मानव।।


                         -5-

मानव -इच्छाएँ सभी,हो न सकी  हैं  पूर्ण।

दस इन्द्रिय का दास जो,चक्र निरंतर घूर्ण।।

चक्र  निरंतर  घूर्ण,नचातीं भीतर    बाहर।

सही गलत की सोच, नहीं हो सके उजागर।।

'शुभम्' हारता  दाँव, भोगता जीवन  रौरव।

रहे न  इच्छा - पार,अधूरा ही वह  मानव।।


🪴शुभमस्तु !


30.12.2022◆1.45

पतनम मार्तण्डस्य।

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