537/2022
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
🏖️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
-1-
छाया
कोहरा घना
ओढ़ता चादर धवल
पूर्व में
सूरज।
-2-
ठिठुरे
पेड़ों पर
बैठे नीड़ों में
पंख फुलाए
पक्षी।
-3-
बोले
गलियों में
तमचूर कूदते जो
पीछे आती
मुर्गी।
-4-
खड़ी
मौन बेचैन
खेत में अरहर
टपके ओस
छबीली।
-5-
बहती
सरिता अविरल
करती रव कलकल,
नित चंचल
अविरल।
-6-
गाड़े
अगियाने में
हमने दो आलू,
खाएँगे हम
भून।
-7-
बीता
आधा पूस
तुषार से काँपे
नर-नारी
सब।
-8-
गज़क
रेवड़ी लड्डू
तिल के भाते
जाड़े भर
खाते।
-9-
साग
चने का
कड़री की भुजिया,
शिशिर भर
भायी।
-10-
लहराया
खेतों में
बथुआ अपने आप
स्वाद ले
खाया।
🪴 शुभमस्तु !
19.12.2022◆8.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें