शनिवार, 10 दिसंबर 2022

सर्द भरी रात है! 🌳 [ मनहरण घनाक्षरी ]

 520/2022

 

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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

पूस ओढ़ शॉल  सेत,मौन धर खड़े  खेत,

शांत  सुप्त  सौम्य रेत,सर्द भरी  रात  है।

पत्र-पत्र लदी ओस,पास नहीं कोस-कोस,

मंद तेज  धूप  जोश,बही शीत वात  है।।

बोल  रहे खग वृंद, गढ़े नित्य दिव्य  छंद,

फूले  सर  अरविंद, रम्यता प्रभात   है।

रेंक  रहे   बँधे  ढोर,  नाचते मुँडेर    मोर,

देख तो  सुरम्य भोर, शून्य हुआ  गात है।।


                         -2-

ठिठुर  रही  चाँदनी,  न गाए गीत रागनी,

सुधामयी  सुहावनी, मंद  बही धार   है।

मौन पेड़ बेल सभी,काँप उठें कभी-कभी,

शीत सुप्त शांत जमीं, जम उठी लार है।।

चाँद भी न बोल रहा,ओस में तनहा नहा,

कठोर  शीत को सहा,मौसमी उभार   है।

वेला उषः सकाल की, चहकती प्रवाल-सी,

प्राची गुलाल  भाल-सी, दिव्य उपहार  है।।


                         -3-

सर्द  भरी  रात  शीत, गात करे कंप  मीत,

गई  है  हेमंत  बीत, सी - सी सिसकारी है।

माँग  रहे   पूस  माघ, आग तापने   निदाघ,

कोस  नित्य   रहे  भाग,  काट रही आरी है।।

पड़े  नहीं  लेश   चैन,  देख  पंथ  थके  नैन,

विरहिणी   दिन  रैन,  शीत  से  दुखारी  है।

शोर  करे  पायलिया, 'शुभं' हुई   बाबरिया,

सर्द  सेज  नागिनिया,शीत की सवारी  है।।


                         -4-

सर्द  भरी   शीत  रात, बहती नीहार  वात,

दुग्ध  स्नात  है   प्रभात, ताम्रचूड़  बोलते।

बतखों  की  बातें सुन,चल रहीं  बाँधे धुन,

केंउ   -  चेंउ    रुनझुन,  नभचर   डोलते।।

मछली  सरि  तैरती,लगन लगी   सैर   की,

रखती  वह  धैर्य  भी, गलफड़े खोल  के।

बकरी मिमियाती है, भैंस  अब  रँभाती है,

गैया  भी पगुराती  है, देती डग तोल   के।।


                         -5-

सर्द भरी श्याम रात,शून्य गात हाथ  लात,

साथ  आग  का  सुहात, उष्ण आहार करें।

कड़री  चने  के  साग,खाते हैं जो  बड़भाग,

पास  बजे   ताप- राग, काजू छुहार   चरें।।

धूप मिले  घनी  ओट,धार गात  गर्म  कोट,

रुई   के  लिहाफ़  लोट, कान बाँध   विचरें।

घरनी हो  सुंदरी-सी, अँगुली में मुंदरी - सी,

नहीं  तेज  बंदरी- सी, सेवामयी    संचरें।।


🪴 शुभमस्तु!


10.12.2022◆2.45प.मा.

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