शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022

खुली हुई आँखों के सपने 🪂 [अतुकान्तिका ]

 553/2022

 

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✍️शब्दकार©

🪂 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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बंद आँखों में

सब देखते हैं

सपने

आंशिक अधूरे,

किन्तु क्या

होते हैं

कभी वे पूरे?


खुली आँखों से

देखें सपने,

स्वदेश के लिए,

स्वधर्म के लिए,

स्वकर्म के लिए।


जाति - वर्ण के

घेरों में

सिमटे रह गए हैं,

ज्यों सरि- प्रवाह में

बह रहे हैं,

जड़  और निर्जीव 

मृत देह,

कोई संदेह ?


पेट तो 

भर लेते हैं

अपना श्वान भी,

हर आने जाने वाले पर

भौंकना ही है  उन्हें

बिना सोचे -समझे हुए।


काश मानव

भिन्न होता

उन श्वानों की

भौं -भौं  से,

तो देश और

 समाज का

रूप यह नहीं होता।


अपना पथ

 स्वयं बनाना है,

आकाश में

पर्वतों

और सागर में

 बढ़ते हुए जाना है,

कर्मवीर बनकर

दिखलाना है,

अपना 'शुभम्' मानवीय

परचम लहराना है,

मनुष्यता को

मनुष्यता ही 

रहने देना है,

ढोरों मेषों की तरह

लकीर का फ़क़ीर

नहीं बना रहना है।


🪴 शुभमस्तु!

30.12.2022◆ 5.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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