510/2022
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✍️ शब्दकार ©
🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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मन में जहाँ उजाले होते।
नहीं कभी वे काले होते।।
स्वेद बहाते तन - मन से जन,
उनके पग में छाले होते।
निर्मल मन - धारक नर - नारी,
भ्रम न उरों में पाले होते।
विषम परिस्थिति झेल रहे हैं,
सुदृढ़ता में ढाले होते।
मन के धनी महादानी हैं,
बंद न उनके ताले होते।
सुमन बरसते हैं रसना से,
शब्द न उनके भाले होते।
'शुभम्' कर्मरत रहने वाले,
कभी न बैठे - ठाले होते ।
🪴शुभमस्तु !
05.12.2022◆6.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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