बुधवार, 21 दिसंबर 2022

श्रम से स्वेद-सिक्त जो रहता 🌳 [ सजल ]

 535/2022


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● समांत: आरे ।

●पदांत : अपदांत।

●मात्राभार :16.

●मात्रा पतन: शून्य।

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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निज    भविष्य    जो    मनुज सँवारे।

चमका    है     वह       बनकर  तारे।।


श्रम     से     स्वेद -सिक्त    जो रहता,

परिजन         उसने       सदा  उबारे।


परिजीवी        निर्भर      औरों    पर,

बैठा        रहता           हिम्मत  हारे।


करनी         में        विश्वास  जगाए,

वह        अजेय         जयकार  उचारे।


सीमा      पर        साहस    से  लड़ता,

अनगिनती       वह    अरि   को   मारे।


कूप      खोद       पीता      जो  पानी,

नहीं         बताता      जलकण  खारे।


'शुभम्'     काम    से   जी न   चुराए,

सिर    पर   मुकुट     विजय का  धारे।


🪴 शुभमस्तु!


19.12.2022◆6.30 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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