शनिवार, 24 दिसंबर 2022

मानवता को नमन🪴 [ देव घनाक्षरी ]

 541/2022

 

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छंद- विधान:

1.देव घनाक्षरी चार चरणों का वर्णिक छंद है।

2.इसमें 8,8,8 और 9 के क्रम से 33 वर्ण होते हैं।

जिसमें 16,17 वर्ण पर यति होता है। यदि 8,8,8 ,9 पर भी हो तो अति उत्तम है।

3.प्रत्येक चरण के पदांत में नगण (III)का होना अनिवार्य है।

4.प्रत्येक पंक्ति के दो चरणों मे समांत  होना अनिवार्य है।

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

कर्म  का विधान एक,कर्म करें सदा   नेक,       

पाएँगे सुफल सदा,चेतना नित हो   सबल।

अंत में न आए राम, किए जो निकृष्ट काम,

सभी क्षण हैं अमोल,चरित्र हो तेरा धवल।।

जिएँ जीने की तरह,ढूँढ़ लाएँ अब्धि - तह,

मुक्ता लाल मूँगा खोज,त्याग प्राण-हर गरल।

योनि मानवी अमूल्य,जानें यही  देव - तुल्य,

'शुभं'क्यों विनष्ट करे, उपयोगी पल-विपल।।


                         -2-

दिवस  संग  रात है, साँझ संग प्रभात   है,

आते जाते सुख दुख,होता यों मानव विकल।

रुके न  समय कभी, जानते ये बात   सभी,

शांति का न त्याग करें,लाएँ जिंदगी में अमल

कर्म  में  कुशल रहें,बाधाओं के   शैल  सहें,

फहराएँ उच्च केतु,होंगे ही मानुष  सफल।।

वीर  बढ़ते   ही सदा,रुकें न पंथ  में   कदा,

दृढ़ता के साथ चलें,कहें नहीं न आज कल।।


                         -3-

पिया  नीर  खाया अन्न,सदा ही  रखा प्रसन्न,

दिए  वेश  भाषा घर, देश भारत  है  महत।

देश का गुमान हमें,हया न आँख में जिन्हें,

धिक्कार है धिक्कार है,बचा न लेशमात्र सत

कृतघ्नता  सवार है,छाया अति  खुमार  है,

नीचता का रूप धरे, होनी ही है तेरी कुगत।।

कृतज्ञ  रहें  देश  के, बनें न रूप  मेष  के,

'शुभम्'जिएँ देश को,अन्यथा बस लें अनत।


                              -4-

अन्न पालता जहान, बीज बो रहा किसान,

करे नित्य उपकार, सहे  कष्ट करे  सुतप।

देती  रही  सब धरा, फैला हुआ  हरा-भरा,

माँगती न शुल्क कदा, निगल रहा गप-गप।।

विषाक्तता  नर  भरे, घात पाँव  पर  करे,

धन्य-धन्य  यह मृदा,कर मातृ भूमि सु-जप।

भूमि  का  कृतज्ञ बन, वृथा नहीं ऐंठ  तन,

शुभ  नहीं यह अदा, तैर नहीं तू  छप-छप।।


                         -5-

भर  रहे   पेट  ढोर, जिएँ  स्वयं   हित  चोर,

कैसी ये अनीति घोर,असत का यही अमल।

भेद  मनुज   ढोर  में,  समुद्र से हिलोर  में,

धुएँ  के घनघोर  में,होती  रही मृषा  चपल।।

आदमी  की  देह धरे, कर्म  पाशविक  करे,

श्वान सम मौत मरे, होना है होगा ही अटल।

योनि को पहचान ले,कर्म का सम ज्ञान ले,

मर्म में अभिधान दे,नृदेह होगी ही  सफल।।


🪴शुभमस्तु!

24.12.2022◆1.00

पतनम मार्तण्डस्य।


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