544/2022
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✍️ शब्दकार ©
📱 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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अपना प्रिय जो उसे भा गया।
मोबाइल हर चीज खा गया।।
आँख मिचौनी गिल्ली- डंडा।
नौ गोटी कंचों का फंडा।।
कंकड़ वाले खेल ढा गया।
मोबाइल हर चीज खा गया।।
ट्रांजिस्टर हो गए ट्रांसफर।
टी वी भी कर रहे विदा घर।।
अखबारों पर झूम छा गया।
मोबाइल हर चीज खा गया।।
नहीं ताश के पत्ते भाते।
चार लोग मिल बैठ न पाते।।
डिबिया में हर चीज पा गया।
मोबाइल हर चीज खा गया।।
टेसू - झाँझी चले जा रहे।
हम बच्चों को नहीं भा रहे।।
छोटे मुँह को बड़ा बा गया।
मोबाइल हर चीज खा गया।।
अगियाने पर नहीं तापते।
ओढ़ रजाई देह ढाँकते।।
भीतर सारे रँग दिखा गया।
मोबाइल हर चीज खा गया।।
छीनी गीतों की ध्वनि प्यारी।
कजरी मस्त मल्हारें न्यारी।।
नयन ज्योति में धुँआ आ गया।
मोबाइल हर चीज खा गया।।
🪴 शुभमस्तु !
26122022◆4.30 पतनम
मार्तण्डस्य।
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