शनिवार, 17 दिसंबर 2022

तेल लगाना :एक कला 🍾 [अतुकान्तिका ]

 532/2022

      

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✍️ शब्दकार ©

🍾 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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सीख न पाया

तेल लगाना,

उल्लू सीधा करने को,

नहीं मिले वे

घड़े तेल के

जिनको चुपड़ें

मल- मल के।


तेल लगाने का गुण

सबको 

सदा नहीं मिल पाता है,

बड़े भाग्यशाली

 होता वह

जो मन से 

तेल लगाता है।


सीखी होती

कला कहीं जो,

बड़े आदमी बन जाते,

परदे के पीछे ले जाकर

तेल महकता 

महकाते।


बड़े पुण्य का

 संस्कार ये,

तेल लगाना आ जाए,

चिकना घड़ा 

बना घूमे जो

आम जनों पर

छा जाए।


फिर भी मैं

प्रसन्न हूँ मन में,

सहलाता मैं नहीं

किसी के कभी

चरण सत हीनों के,

नहीं वंदना करता

नेता - नेती की

हूँ आनंदित 

सँग दीनों के।


प्रभु वह दिन 

मत लाना ,

जब याचक बनूँ

लगाने तेल,

'शुभम्' चरित  ही

मुझे सुहाते

उनसे मेरा

उर से मेल।


🪴 शुभमस्तु! 


16.12.2022◆4.15 

पतनम मार्तण्डस्य।


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