525/2022
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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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पौष मास की सर्द रात है।
ओढ़े सित चादर प्रभात है।।
धूप गुनगुनी दिन में भाती,
होता निशि में तुहिन पात है।
तन में चुभते तीर शीत के,
सी - सी करती शिशिर- वात है।
निर्मल मन के धारक कितने,
जन - जन में कटु भितरघात है।
गेंदे , पाटल , सूरजमुखियाँ,
सुरभि - सुगंधित - सुजन -गात है।
फूल - फूल पर तितली भौंरे,
प्रकृतिजन्य शुचि करामात है।
'शुभम्' बदलते ऋतुएँ मौसम,
हर परिवर्तन समय - जात है।
🪴 शुभमस्तु!
12.12.2022◆7.00आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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