सोमवार, 5 दिसंबर 2022

मन में जहाँ उजाले होते 🔰 [ सजल ]

 509/2022


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★समांत : आले ।

★पदांत  : होते ।

★मात्राभार  :16.

★मात्रा पतन :शून्य ।

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✍️ शब्दकार ©

🦢 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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मन      में     जहाँ      उजाले   होते।

नहीं     कभी       वे      काले   होते।।


स्वेद    बहाते      तन -  मन  से जन,

उनके       पग      में      छाले  होते।


निर्मल     मन  -  धारक   नर  - नारी,

भ्रम     न    उरों      में    पाले  होते।


विषम      परिस्थिति      झेल  रहे हैं,

सुदृढ़ता           में          ढाले    होते।


मन      के    धनी       महादानी    हैं,

बंद         न       उनके      ताले  होते।


सुमन       बरसते      हैं     रसना  से,

शब्द       न      उनके    भाले   होते।


'शुभम्'       कर्मरत     रहने    वाले,

कभी        न       बैठे  -  ठाले   होते ।


🪴शुभमस्तु !


05.12.2022◆6.45 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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