550/2022
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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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उतरी है
अंबर से
ठिठुराती रात।
कोहरे में
होती है
झीनी बरसात।
भारी- सी
रजाई में
करते आराम।
नवोढ़ा के
आँचल में
घुस आई घाम।।
बीते हैं
दिन दो ही
करे नहीं बात।
जग जाए
सासू माँ
लगता है डर।
नींद नहीं
आँखों में
कुंडी बजी खर।।
बोला है
कुक्कड़ कूँ
हो गई प्रभात।
आँगन में
गौरैया
चूँ- चूँ स्वर बोल।
भौजी के
शब्द -सुमन
रस रहे घोल।।
पिड़कुलिया
डाली पर
फुला रही गात।
गेहूँ के
पल्लव- दल
शुक्तिज की ओप।
दिनकर की
रश्मि नई
दिखलाती कोप।।
मुँड़ेर पर
तुहिन जमी
हो गई मात।
🪴 शुभमस्तु !
29.12.2022◆12.30 पतनम मार्तण्डस्य।
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