539/2022
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✍️ शब्दकार ©
🛋️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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अच्छी लगती गरम रजाई।
कहते बाबा, दादी, ताई।।
जब जाड़े की ऋतु है आती।
दुर्बल तन को नहीं सुहाती।।
भुनी शकरकंदी मनभाई।
अच्छी लगती गरम रजाई।।
श्वेत कोहरा है छा जाता।
अंबर से नीचे बरसाता।।
धूप नहीं देती दिखलाई।
अच्छी लगती गरम रजाई।।
धुँआ छोड़ता ताजा पानी।
नहीं नहाती मुनिया रानी।।
गज़क रेवड़ी जी भर खाई।
अच्छी लगती गरम रजाई।।
मकई और बाजरे वाली।
रोटी खाते गरम निकाली।।
यहाँ वहाँ ठंडक ही छाई।
अच्छी लगती गरम रजाई।।
कट-कट दाँत बज रहे सारे।
नहीं गगन में दिखते तारे।।
साँझ लिए आई सुरमाई।
अच्छी लगती गरम रजाई।।
🪴 शुभमस्तु!
19.12.2022◆6.00
आरोहणम् मार्तण्डस्य।
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