556/2022
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✍️ व्यंग्यकार ©
👨🏻🍼 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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भारतीय बारह राशियों में मात्र दो राशियों को छोड़कर शेष दस राशियों का प्रतिनिधित्व पशु तथा अन्य जंतु जैसे भेड़, बैल,केकड़ा,सिंह,बिच्छू,अर्द्ध अश्व,मगरमच्छ,मछली ,नर नारी का मिथुन युगल और कन्या (ये भी जंतु ही हैं) ;से किया जाता है।किन्तु चीनी ज्योतिष के अनुसार वहाँ मनुष्य के लिए तो कोई स्थान ही नहीं है।वहाँ सभी बारहों राशियों में क्रमशः चूहा, बैल/गाय,बाघ,खरगोश ,ड्रैगन, साँप,घोड़ा, भेड़/बकरी,बंदर, मुर्गा,कुत्ता और सुअर ये कुल बारह प्रतीक परिकल्पित किए गए हैं।कुल मिलाकर देखा जाए तो मानव की नगण्यता के बाद पशु पक्षियों को प्रमुखता मिली है।इससे यह प्रतीत होता है कि मानव में मानव के कम पशुओं औऱ पक्षियों की प्रकृतिं की प्रधानता है।तराजू तो पापों- पुण्यों को तोलकर घड़े (कुम्भ) में भरने भर के लिए ही हैं।इससे यह भी संकेत मिलता है कि मनुष्यों में उनका अपना न्यूनतम ही है।चौरासी लाख यौनियों में पशु पक्षी का ही बाहुल्य है।इसीलिए उनके ही गुण अवगुण मानव यौनि में जन्म लेने पर आ जाते हैं ।
जब मानव का झुकाव और लगाव मानवेतर प्राणियों से ही अधिक है तो उनमें मानवेतर गुण अवगुण भी मिलना स्वाभाविक है।इस बात को दृष्टिगत करते हुए भारतीय मानव वर्ग को क्यों न पूरी तरह पशुओं के नाम कर दिया जाए। वर्गीकरण को निम्नवत चार भागों में विभाजित कर लेते हैं:--
1.हस्ती वर्ग।
2.सिंह वर्ग
3.अश्व वर्ग।
4.शूकर वर्ग।
इन चारों वर्गों की अपनी- अपनी विशेषताएं हैं।जो परस्पर एक दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं।पहला वर्ग 'हस्ती वर्ग' है। यह वर्ग अपने कद काठी और ऊँचाई में किसी को भी नहीं गिनता।यह केवल उसको महत्त्व देता है,जो इसको तेल लगाता है।इसकी रक्षा करता है। वरना इसकी दृष्टि सदैव आसमान को देखने की ही रहती है।अपनी सर्वोच्चता के अभिमान में यह किसी को घास डालना अपनी तौहीन समझता है।जिनको यह अपने से छोटा समझता है,उनकी घास खा सकता है। खाता भी है।लेकिन अच्छी तरह सूँघ देखकर ही स्वीकार करता है।आवश्यकता पड़ने पर गधे को भी पिताजी बनाने में इसे कोई आपत्ति नहीं है।महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इसके खाने और दिखाने के दाँत अलग- अलग ही होते हैं।
दूसरा वर्ग 'सिंह वर्ग' है।जैसा कि इसके नाम से ही सिद्ध होता है कि यह हस्ती वर्ग का रक्षक औऱ स्वावलंबी है। यह अपना और अपने विश्वास पात्र सबकी रक्षा ही नहीं करता ,बल्कि उनका पोषण भी करता है।हस्ती वर्ग की तेल मालिश में इसे बहुत आनन्दानुभूति होती है।उससे परम् संतुष्ट भी रहता है।यह ऊपर नीचे देखकर चलता है।अपने चौपायों का इसे बहुत अभिमान भी है।जिनके बल बूते यह अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखता है। जरूरत पड़ने पर अश्व आदि का पोषक भी बन जाता है।
तीसरे वर्ग में 'अश्व वर्ग' को मान्यता दी जाती है। यह एक परिश्रमी वर्ग है। जो हस्ती और सिंह दोनों वर्गों का सहायक औऱ पोषक है।उत्पादन ,संरक्षण, वितरण आदि कार्य का दायित्व इस वर्ग के हिस्से में आते हैं।उद्यम शीलता इस वर्ग की प्रकृति है। यदि किसी वर्ग को उद्यम सीखना हो ,तो इस वर्ग से प्रेरणा ग्रहण करे। सकता हस्ती ,सिंह और उसका अगला शूकर वर्ग इस वर्ग से प्रेरित हो भी रहा है।क्योंकि उन्नति औऱ प्रगति के लिए इससे अच्छा कोई वर्ग नहीं है।
अंतिम और चौथा वर्ग है: 'शूकर वर्ग'। यह उक्त तीनों वर्गों की सेवा औऱ स्वच्छता का दायित्व ग्रहण करते हुए सबका सहायक वर्ग है। उसे कोई महत्व दे अथवा नहीं दे; वह सहिष्णुता का सुंदर पर्याय है।यद्यपि उसे भी अपने स्वाभिमान से अत्यंत प्रेम है।
किसी भी वर्ग को यह नहीं मान लेना चाहिए कि जन्म जन्मांतर तक उसकी वर्ग व्यवस्था बदलेगी नहीं।इसलिए किसी को भी किसी अन्य को हीन या तुच्छ मानने का कोई अधिकार नहीं है।पता नहीं कि कब कौन हस्ती शूकर बन जाए औऱ शूकर हस्ती के आसन पर आसीन हो जाए।सिंह कब अश्व बनकर खड़ा हो जाए या शूकर ही सिंह बन जाए।इसलिए कोई किसी वर्ग को छोटा बड़ा न समझे। यह तो उसके कर्म का खेल है कि किस रूप में देह धारण करता है।चतुर्वर्ग में विभक्त यह मानव जगत अपनी कर्म गति के परिणाम से वर्गान्तरण करता हुआ अपने अहं में उछलता कूदता हुआ कपि- क्रीड़ा में मग्न रहता है।
🪴शुभमस्तु !
31.12.2022◆6.00
पतनम मार्तण्डस्य।
🐘🐆🐎🐖🐘🐘🐎🐖🐘
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