शनिवार, 17 दिसंबर 2022

शंखनाद 🏫 [ मनहरण घनाक्षरी ]

 533/2022

       

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

✍️ शब्दकार©

⛳ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■

                           -1-

शुचि  शंखनाद सुन,गूँजती अबाध  धुन,

स्वप्न  रहे  आश  बुन,   उर  में उमंग   है।

पवित्र  शिवधाम   में,   करता प्रणाम  मैं,

रहता  हूँ अनाम मैं, भाल दिव्य  गंग   है।।

पार्वती  गणेश  संग, सोम वास  है निरंग,

क्षणेक  जीता अनंग, वंद्य  रूप रंग   है।

काल महाकाल  एक,विश्व वंद्य  व्यतिरेक,

लिखे भाग्य लिपि लेख,प्राण की तरंग है।।


                         -2-

गूँज  उठा  शंखनाद,  जाग त्याग  मृषोन्माद,

यहाँ  वहाँ   भरे नाग, देश  की पुकार    है।

देशभक्त   यहाँ  कौन, शक्तिवान  खड़े मौन,

लीन  काठ  तेल  नौन,नीचता- खुमार   है।

भंग  हुआ  देशराग,  सुलगती  है   कुआग,

आदमी  ज्यों मेष छाग, अंधता  ग़ुबार  है।

देश  को  बचाएँ  हम,  शत्रु  से  रहें न कम,

सत्त्व से  बनें 'शुभम्',चिन्त्य समुदार   है।।


                         -3-

शंख  बजे  भूत  भगे, गेह  में सकार  जगे,

कीट भी  विकार तजे, शंखनाद  कीजिए।

शत्रु सीमा पार खड़ा,डाल के पड़ाव बड़ा,

सोता देशवासी पड़ा,देश-  भाव  भीजिए।।

पवनपुत्र    हनुमान,   महावीर हैं   महान,

मारें  गदा  शक्ति- बान,प्रेरणा तो   लीजिए।।

भूल  नहीं पार्थ  वीर, याद करें शब्द - तीर,

वेग  ज्यों  बहे   समीर, देश   पै  पसीजिए।।


                         -4-

शंख  में  रमा  निवास,  सत्य, नहीं उपहास,

गेह  में   शुभ  उजास, शंखनाद  मंत्र   है।

धाम  को  पवित्र  करें,नकार दोष  भी  हरें,

'शुभम्'  गान  उच्चरें, प्राकृतिक   यंत्र    है।।

दक्षिणावर्ती स्वरूप, धनहीन या  कि  भूप,

बैठता  है  शंख चुप,ये  विचित्र   तंत्र    है।

पुरुष श्रेष्ठ  या कि नारि,वादन करें  सँभारि,

श्वास- शक्ति अनुहारि, शुचिता  स्वतंत्र  है।।


🪴 शुभमस्तु!


17.12.2022◆3.00 

पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...