514/2022
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
✍️ शब्दकार ©
🚩 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■◆■
जन्मभूमि की जोश में, बोलें जय जयकार।
खाते-पीते अन्न-जल , रहें न बनकर भार।।
आजीवन करते रहें, हम ऐसे सत्कर्म।
जगती में जयकार हो, प्रेरक हो सद्धर्म।।
सभी मनुज यह चाहते,जगत करे जयकार।
उधर आड़ में वे बने, डाकू ठग बटमार।।
कर्मों की जयकार है, कर्मों का हर खेल।
बुरे कर्म में लीन जो,जीवन उनका जेल।।
झूठी जय जयकार से,बनते नहीं महान।
ज्यों नेता करवा रहे, दिखावटी सम्मान।।
भक्त लालची जोर से,बोल रहे जयकार।
रैली में थैली चढ़ा ,डाल रहे गलहार।।
देशभक्त कहता नहीं,गाएँ उसके गीत।
नित होती जयकार ही,रहता सदा अभीत।।
पिता जननि के मान से,संतति की जयकार
गगनांचल में गूँजती, वाणी 'शुभम्' सँवार।।
विश्व-पटल पर गूँजता,भारत का शुभ नाद।
प्रगति पंथ जयकार से,पूर्ण हृदय आह्लाद।।
सत्य-शोध कविता करें, जन जन में हो नाम।
करताली जयकार की,चमकाएँ कवि-धाम।।
कोरी जय जयकार से,नहीं शेष सत-सार।
नेताजी की कामना,कृत्रिमता का प्यार।।
🪴 शुभमस्तु!
06.12.2022◆9.15प.मा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें