शुक्रवार, 9 दिसंबर 2022

कानन इच्छा का घना 🌳 [ कुण्डलिया ]

 517/2022


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✍️शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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                         -1-

बहती मन -गिरि से सदा,इच्छा बन जलधार।

रसना दो दृग नासिका,कर्ण त्वचा सुखसार।

कर्ण त्वचा सुखसार,हस्त पग सुंदर आनन।

करते कर्म अपार,देह का विस्तृत   कानन।।

'शुभम्' गा  रही  गान,निरंतर चलती  रहती।

सरिता इच्छा-धार,मनुज के मन से  बहती।।


                         -2-

बनकर इच्छा-दास नर,रखे न सिर पर ताज।

नाच नचाएँ रात-दिन,बिगड़े जीवन - साज।।

बिगड़े जीवन-साज,दाह मन की भी  मापें।

परख कसौटी -शैल,अनल की ज्वाला तापें।।

'शुभं'लोभ को त्याग,नहीं बन मृग तू वनचर।

कर इच्छा पर राज,शाह रह मन का बनकर।


                         -3-

कानन   इच्छा का घना,बैठे ठग   बटमार।

झाड़ भरी पगडंडियाँ,भूले पथिक  हज़ार।।

भूले  पथिक   हज़ार,  अनूठी भूलभुलैयाँ।

मन के   हाथ  लगाम,उलझती शूलकटैयाँ।।

'शुभम्' न करना मोह,देखकर नारी आनन।

इच्छाओं का धाम,लालची मन का कानन।।


                         -4-

गोरे - काले   रंग  दो,  इच्छाओं  के   रूप।

एक   चढ़ाए   शृंग  पर,  एक गिराए कूप।।

एक गिराए  कूप,  नहीं उनको यदि  जानो।

ले  जाए  पाताल, मीत  धी  से  पहचानो।।

'शुभम्'  बिगाड़ें  हाल, बने मत रहना  भोरे।

धरतीं  बहु  आकार,  रंग दो काले  -  गोरे।।


                         -5-

सबको सहज नहीं कभी,इच्छा की पहचान।

क्या उसका मंतव्य है,क्या गंतव्य   सुजान।।

क्या गंतव्य सुजान,नियंत्रण- वल्गा जकड़ें।

कर  लें  पूरा  ज्ञान,कसौटी पर घिस  रगड़ें।।

'शुभं'न भटकें मीत,उछलकर छू लें नभ को।

बहुरूपिया स्वरूप,स्वछ मत समझें सबको।


🪴शुभमस्तु!


09.12.2022◆2.00प.मा.


🏕️🪴🏕️🪴🏕️🪴🏕️🪴🏕️

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