बुधवार, 14 दिसंबर 2022

प्रभु की प्रभा अनंत 🪷 [ दोहा ]

 529/2022


[अंत,अनंत,आकाश,अवनि ,अचल]

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✍️ शब्दकार ©

🪷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'

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     🧡 सब में एक 🧡

आदि अंत के मध्य में,सकल सृष्टि साकार।

जो  आया  जाना  उसे, होता है  अनिवार।।

छिपा अंत में जीव का,कर्म- भोग परिणाम।

सदुपयोग पल का करें,जीवन बने ललाम।।


ईश- सृष्टि में प्रकृति का,है अनंत  विस्तार।

सब  उससे अनभिज्ञ  हैं,भंग न होती धार।।

अक्षय अमर अनंत है,प्रभु की लीला मीत।

कर प्रयास पाया  नहीं, सका न कोई  जीत।।


पंच तत्त्व विस्तार में,व्यापकतम आकाश।

सबका आलय है वही,सदा नित्य अविनाश।

मम  उर के आकाश की,सीमा है अज्ञात।

शब्द भाव गुंजारते,बन कविता  दिन-रात।।


धुरी अवनि चलती रहे,प्रतिपल प्रति दिनरात

सूर्योदय  शुभ काल  में,देती नवल   प्रभात।।

अवनिअंक में धारती, जन्म अवधि सह मोद

कष्ट न हो तृण मात्र भी,संग सुशीतल ओद।।


चंचल मन करना नहीं,ज्यों पीपल का पात।

अचल वचन हिमवंत-सा,नर को सदा सुहात

मेरे उर  शुभ कामना,अचल रहे अहिवात।

सुता सुखी जीवन जिएँ,आजीवन दिन रात।

    🧡 एक में सब 🧡

प्रभु की प्रभा अनंत है,

                      अंत   रहित   आकाश।

अवनि  सचल है अचल गिरि,

                        अमर मनुज की    आश।।


 🪴 शुभमस्तु !


14.12.2022◆7.30 आरोहणम् मार्तण्डस्य।

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