545/2022
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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
अब साल नई शुभ आइ रही,
शुभता सबको प्रभु दें सुखदा।
सुखदा उर भाव रहें जन के,
कविता वर मीत करें वरदा।।
वरदा धन-धान्य भरें गृह में,
शुभ राह चलें घरनी प्रमदा।
प्रमदा गुरु हैं निज संतति की,
करतीं पति -गेह सदा शुभदा।।
-2-
तन नंग-धड़ंग उघारि चलें,
बदराह कुचाल हुईं अँगना।
अँगना निज अंग दिखाइ रहीं,
मद में तनि झूमि चलें सजना।
सजना समझाइ नहीं तिय को,
पड़ि जाइ न पीठि कहूँ बिलना।
बिल नाहिं बने घुसि जायँ कहीं,
निज जान बचाय छिपें पियना।।
-3-
कुल-मानक भूलि गईं घरनी,
इतराइ चलें बिगड़ी करनी।
करनी-फल नीक नहीं मिलनों,
जितनी करनी उतनी भरनी।।
भरनी न भरी नित रिक्त रहें,
भव पार नहीं तरिका तरनी।
तरनी पतवारनु थामि चलें,
मँझधार नहीं पड़ती मरनी।।
-4-
बिगड़ें घर संतति शांति नसे,
घरनी घर की नित हो शुभदा।
शुभदा सत चारु चरित्र रहे,
तब मातु रमा रहतीं वरदा।।
वरदायिनि शारद ज्ञान भरें,
झड़ता तम का धुँधला गरदा।
गरदा न रहे तहँ तेज महा,
शुभ रूप ललाम सदा प्रमदा।।
-5-
खग-शावक अंड विखंड करें,
जब पंख उगें नभ में उड़ते।
उड़ते तजि नीड़ स्वतंत्र रहें,
पुनि लौटि नहीं घर को मुड़ते।।
मुड़ते नभ में नव खोज करें,
नित मंजिल उच्च नई चढ़ते।
चढ़ते गढ़ते सुख- साज नए,
नित वृद्धि करें पथ में बढ़ते।।
🪴 शुभमस्तु!
27.12.2022◆3.45
पतनम मार्तंडस्य।
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