527/2022
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छंद विधान: 1.सिंहावलोकन सवैया चार चरणों का एक समतुकांत वर्णिक छंद है।
2.इसमें 08 सगण (II2 ×8)=24 वर्ण होते हैं। १२ वर्ण पर यति होता है ।
3.इसकी प्रथम पंक्ति का अंतिम शब्द दूसरी पंक्ति का प्रथम शब्द होता है।
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✍️
शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम्'
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-1-
भरतार गए जब सों घर से,
दिन रैन दुखें तिय की अँखियाँ।
अँखियाँ नित नीर भरी बरसें,
दुख जानि रहीं नियरी सखियाँ।।
सखियाँ समुझाय रहीं सखि को,
कछु हासमई करके बतियाँ।
बतियाँ न करें दुख दूरि भलें,
भरतीं बल सों सखि की छतियाँ।।
-2-
सुखसार नहीं ससुराल सदा,
दुइ चारि दिना सुख में निकरें।
निकरें घर से यह सोचि चलें,
अधिकाइ करें ससुरे बिगरें।।
बिगरें ससुराल न नेह रहे,
कछु काम लगाइ तुम्हें रगरें।
रगरें नहिं मान मिलें तुमकूं,
जिजुआ-जिजुआ कहि के झगरें।।
-3-
अवतार लियौ हमनें तुमनें,
गत यौनि पधारि गए धरती।
धरती तल पै बहु जीव बसें,
कृत कामनु के फल ही करती।।
करती भव में शुभ फूल खिले,
घट पापनु पुण्यनु सों भरती।
भरती घट की जब ग्रीव सभी,
पुनि यौनि नई भव में सरती।।
-4-
अब शीत धमाल कमाल करै,
रतियाँ भरि ओस लिए बरसें।
बरसें नभ तें हिम की डलियाँ,
तमचूर जगें गलियाँ हरसें।।
हरसें सजनी सँग साजन के,
अब सेज नहीं पिय को तरसें।
तरसें मुख में इक दाँत नहीं,
कत चाबि चना ददुआ घर सें।।
-5-
उर में बसते सिय राम सदा,
नित जानकिनाथ सदा शुभदा।
शुभदा करतीं अपनी सु-कृपा,
कविता करता जड़ मैं वरदा।
वरदा रमतीं रसना रस की,
धर रूप सजे शुचिता प्रमदा।
प्रमदा रचतीं जग की रचना,
बनती घरनी घर की सुखदा।।
🪴 शुभमस्तु !
13.12.2022◆ 2.45 पतनम मार्तण्डस्य।
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