429/2024
©शब्दकार
डॉ.भगवत स्वरूप 'शुभम्'
समांत : आर
पदांत : अपदांत
मात्राभार :24.
मात्रा पतन : शून्य
परहिताय जीना जिसे,जीवन वह उपहार।
परजीवी जो जीव हैं, उनके विविध प्रकार।।
मनुज देह सब कुछ नहीं,उसमें भी हैं ढोर।
कर्म धर्म कारण सदा,करना प्रथम विचार।।
जब तक जीवन डोर से,बँधा हुआ नर जीव।
नश्वर तन का मोल क्या,जुड़ा हुआ है तार।।
पर सम्पति पर दृष्टि है, पर नारी की चाह।
बना लिया है व्यक्ति ने, जीवन कारागार।।
गली - गली में श्वान भी, बन जाते हैं शेर।
पूज्य सदा विद्वान ही, सभी खुले हैं द्वार।।
हाथी जाते राह में, श्वान भौंकते खूब।
करें वही करणीय जो,पड़े देह पर मार ।।
बारंबार विचारिए, जब करना हो काम।
'शुभम्' न धोखा हो कभी,रवि हो या शनिवार।।
शुभमस्तु !
16.09.2024● 2.00 प०मा०
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