रविवार, 7 मार्च 2021

नारी तू नारायणी [ दोहा ]


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✍️ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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महीयसी  महिला सदा,जीवन का आधार।

मानवता  को सेवती, मानें सब  आभार।।


देती अपनी कुक्षि से,जन्म सदा हर नारि।

ढोती नौ -नौ मास वह,नारी जीवन -वारि।।


धरती   जैसा  धीर है,  बहती सुखद बयार।

दुर्गा  माँ-सी आग  तू,   नारी जल की धार।।


अपने  आँचल  में  छिपा,देती शिशु को नेह।

यौवन में निज प्रणय का,नारि गिराती  मेह।।


नारी   तू   नारायणी,  नारायण  नर  नेक।

परिपूरक   दोनों  सदा, जागृत करो विवेक।।


जीवन यह सर्कस नहीं,दो पहियों का साथ।

नर - नारी  दोनों चलें,मिला हाथ  में  हाथ।।


नारी  के  बहु  रूप हैं,  दुर्गा नव  अवतार।

काली, वाणी ,  तू  रमा,पूज रहा   संसार।।


नारी  को देवी  कहे, तू न बना क्यों    देव।

स्वार्थ  पूर्ति  से  पूजता, कैसी दूषित  टेव।।


बोध हीनता  का  नहीं, मन में रख  तू  नार।

तू  सबला,अबला नहीं, नर को रखे सँवार।।


आगे - पीछे   का  नहीं, उठता कहीं  सवाल।

पहिए  चलते साथ ही,बनती है  तव चाल।।


आओ नारी  का करें,हम सब  मिल सम्मान।

'शुभं'मातु,जननी,भगिनि,करे सुधा का दान।


🪴 शुभमस्तु !


०७.०३.२०२१◆९.००पतनम मार्तण्डस्य

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