रविवार, 21 मार्च 2021

ग़ज़ल

 

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

 ✍️ शब्दकार©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

फ़ागुन       में      कोयल     रस  घोले।

फिर     भी   सजन   रहे   अन   बोले!!

    

रंगों      से     तर-ब-तर   शहर   भर,

पुरबा     सनन    सनन    सन  झोले।


दिवरा       कहे      खेल     रँग   भौजी,

पीपल      पात       सदृश     मन  डोले।


ढोलक     के       सँग    ताल मिलाए,

ढप,     करताल      खनन  खन  बोले।


छत   पर     भरी     रंग     की  मटकी,

भरा     कटोरा     छन -   छन  हो   ले।


रगड़        गाल       पर    रँग गोरी   के ,

यौवन ,      यौवन        का     तन  तोले।


'शुभम'       मधुर      मधुमास  मनोहर,

बौरा          अमुआ       आनन  खोले।


🪴 शुभमस्तु  !


२१.०३.२०२१◆२.३० पतनम मार्तण्डस्य

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...