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✍️ शब्दकार©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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फ़ागुन में कोयल रस घोले।
फिर भी सजन रहे अन बोले!!
रंगों से तर-ब-तर शहर भर,
पुरबा सनन सनन सन झोले।
दिवरा कहे खेल रँग भौजी,
पीपल पात सदृश मन डोले।
ढोलक के सँग ताल मिलाए,
ढप, करताल खनन खन बोले।
छत पर भरी रंग की मटकी,
भरा कटोरा छन - छन हो ले।
रगड़ गाल पर रँग गोरी के ,
यौवन , यौवन का तन तोले।
'शुभम' मधुर मधुमास मनोहर,
बौरा अमुआ आनन खोले।
🪴 शुभमस्तु !
२१.०३.२०२१◆२.३० पतनम मार्तण्डस्य
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