सोमवार, 22 मार्च 2021

वाणी [ कुंडलिया ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🎻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                        -1-

वाणी  भू  से गगन तक,मचा रही  जग धूम।

नव्य सिद्धि गिरि मेरु के,शृंग रही नित चूम।

शृंग रही   नित  चूम,  वेद रामायण जितने।

पावन ग्रंथ महान,ज्ञान के सागर    कितने!!

'शुभं'सुरक्षितआज,सु-वाणी जन कल्याणी।

मानवता का बीज,बो रही मानव - वाणी।।


                        -2-

ऐसी  वाणी  बोलिए,   हृदय कली हो फूल।

लगे  सुमन की पाँखुरी,झाड़े मन  की  धूल।।

झाड़े  मन  की  धूल,आर्द्रता से मन   रीझे।

माने  पत्नी बात,अगर प्रियतम से   खीझे।।

'शुभम' न  तान  कमान, न हालत ऐसी वैसी।

बोले  वाणी सौम्य, लगे जो सुमधुर   ऐसी।।


                        -3-

कौरव-पांडव  युद्ध का,जाने जग   परिणाम।

क्रूर महाभारत  हुआ,समय मनुज का वाम।।

समय मनुज का वाम,सुनी जब कृष्णा-वाणी

जमा विनाशी बीज,आँख शकुनी की काणी।

'शुभम' न ऐसे बोल,बने जीवन  ये   रौरव।

हुई सत्य की जीत,लड़े जब पांडव- कौरव।।


                        -4-

वाणी  में अमृत बसा,वाणी में विष - बीज।

शीतलता का घट यही,यही अनल-सी चीज।

यही अनल-सी चीज,जलाती कुनबा  सारे।

बोले  बिना विचार,सैन्य कौरव दल मारे।।

'शुभम'सोचकर बोल,बने जग की कल्याणी।

मानव  को वरदान,शारदा माँ की   वाणी।।


                        -5-

वाणी   माँ  का नाम है ,देती ज्ञान   अपार।

कविमुख से कविता बनी, रहती सदा उदार।

रहती सदा  उदार, वही  मानव  की   भाषा।

शिशु को तोतल बोल,रमा का रम्य उजासा।।

'शुभं'जगत के जीव,धरा जल नभ के प्राणी।

बिन वाणी के मूक,सभी की माता  वाणी।।


🪴 शुभमस्तु !


२२.०३.२०२१◆१.००पत नम मार्तण्डस्य।

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