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काफ़िया-- आए,
गैर मुरदफ़्फ़ ग़ज़ल
✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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आदमी साथ में कुछ लेकर न जाए ।
गए जो धरा से अकेले सिधाए।।
माँ थी अकेली थे तुम भी अकेले,
तुम्हें जिंदगी के झमेले सुहाए।
जब तुम गए तो जमाना खड़ा था,
जिसने जो बोला अलबेले कहाए।
रोता है कोई बिलखता है कोई,
आँसू भी हिचकियाँ ले ले बहाए।
जी ले ऐ इंसाँ! जीवन को ऐसे,
यादों में ज़माना ये मेले सजाए।
किसी का बुरा हो सोचो न पगले!
लाया न कुछ भी तू ले के न जाए।
सबका भला हो सब होवें निरोगी,
'शुभम' महकते पुष्प बेले खिलाए।
🪴 शुभमस्तु !
०७.०३.२०२१◆९.३० आरोहणम मार्तण्डस्य।
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