गुरुवार, 4 मार्च 2021

लेखनी मैया 🖊️ [ अतुकान्तिका ]

             

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✍️ शब्दकार ©

🖋️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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नहीं है तू पखेरू

किंतु पंखों पर 

रही उड़ती ,

कभी चलती

कभी मुड़ती

पर क्या कभी रुकती!


पंख के ही रूप में

जन्मी कभी 

तू लेखनी,

डुबोकर मसी में 

अपना मुँह 

लिखती रही,

चारों वेद और पुराण,

महाभारत रामायण,

गीता और बाइबिल 

और पवित्र कुरान,

एक से एक हैं महान,

करते हैं तव 

महिमा का गान,

कितनी उच्च है तव शान।


सरकंडा मूँज का 

 कभी नरसल से भी  बनी ,

पर सदा ही रही  है

तू बनी- ठनी,

प्रत्येक युग में

मानव को रही

तेरी चाहत घनी,

आए तभी काष्ठ के

होल्डर,

लगाए अपने मुख में

निब हिंदी अंग्रेज़ी के

अलग - अलग,

लिखा खड़िया से

कभी गेरू से,

हथौड़े छैनी से,

धार पैनी से 

उकेरे गए अक्षर

अभिलेख शिलालेख,

प्रतिमाएँ मंदिर विशाल,

पर कम नहीं हुई 

लेखनी तेरी चाल।


युग बदला 

आदमी कुछ आगे बढ़ा,

प्रगति के पथ पर चढ़ा,

नया इतिहास गढ़ा,

स्याही के भरे हुए पैन,

इंसान भी कितना

विचित्र है न! 

नहीं जानता रुकना,

वक्त के आगे झुकना!

ले आया डॉट और जैल

के कलम!

आते हैं उसकी बुद्धि को

कितने इल्म ,

कैसा - कैसा  है

इस मानव का तिलस्म।


और आज !

कुछ अलग ही है

 तेरा साज,

कम्प्यूटर मोबाइल

के परदे पर ,

अँगुली को ही

लेखनी बना दिया 

कैसे हैं रहस्य वाले 

ये नारी - नर,

सब आभासीय संसार,

अद्भुत है  'शुभम' 

तेरी लेखनी का प्रसार!

कुंजी- पटल 

लिखने का सहारा अटल,

पर रुकना नहीं सीखा है,

लेखनी मैया  तेरा संसार

अनौखा है,

भविष्यत के गर्भ में

क्या छिपा है,

न तुमने देखा 

न मैंने दीखा है।


🪴 शुभमस्तु !


०४.०३.२०२१◆७.४५पतनम मार्तण्डस्य।

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