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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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रँग गुलाल,
चंदनी भाल,
रसभरित बात,
होली - हुलास,
महकती श्वास।
आया फ़ागुन,
अति मन भावन,
सखि-साजन,
रँग - रस रंजन,
अलि दल गुंजन।
भावज साली,
मति मतवाली,
गोरी काली,
मिश्री डाली,
खेलें होली,
मधुरस बोली।
झरता पराग,
टेसू की आग,
शैया का नाग,
कैसा विराग!
हर रँग सुहाग।
जागा अनंग,
बरसा सु-रंग,
प्रिय -प्रिया संग,
संसार दंग,
सब रँग -बिरंग।
पिचकारी धार,
नर और नार,
अद्भुत खुमार
दिखता न मार,
उत्तल उभार।
नव फाग -राग,
उर बाग- बाग,
नर जाग-जाग,
नारी-सुहाग,
धा-धिनक-धाग।
🪴 शुभमस्तु !
१८.०३.२०२१◆६.००पतनम मार्तण्डस्य।
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