शनिवार, 13 मार्च 2021

ग़ज़ल 🌴

 

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✍️  शब्दकार ©

☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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दौलत   का    मद   अलग - अलग  है।

मुफ़लिस   का कद अलग - अलग   है।।


अंबर              में        तारे   अनगिनती

सबका     मक़सद     अलग - अलग  है।


सूरज           की          अपनी     मर्यादा,

शशि   की   भी    हद   अलग - अलग  है।


नहीं         मानता         नियम    सुनहरे, 

इंसाँ        की    जद    अलग - अलग है।


कभी    एक       था      मानव  -  मानव,

अब    सबका     कद  अलग - अलग है।


केर   -    बेर       का     साथ   न    कोई,

लीची          बरगद      अलग -  अलग है।


सरिता ,      सागर,      ताल,   झील  भी,

उनसे       पर्वत        अलग - अलग   है।


🪴 शुभमस्तु !


१३.०३.२०२१ ◆ ५.३०पतनम मार्तण्डस्य।


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