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✍️ शब्दकार ©
☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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दौलत का मद अलग - अलग है।
मुफ़लिस का कद अलग - अलग है।।
अंबर में तारे अनगिनती
सबका मक़सद अलग - अलग है।
सूरज की अपनी मर्यादा,
शशि की भी हद अलग - अलग है।
नहीं मानता नियम सुनहरे,
इंसाँ की जद अलग - अलग है।
कभी एक था मानव - मानव,
अब सबका कद अलग - अलग है।
केर - बेर का साथ न कोई,
लीची बरगद अलग - अलग है।
सरिता , सागर, ताल, झील भी,
उनसे पर्वत अलग - अलग है।
🪴 शुभमस्तु !
१३.०३.२०२१ ◆ ५.३०पतनम मार्तण्डस्य।
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