मंगलवार, 16 मार्च 2021

पुरानी याद 🍃🍃 [ गीत ]


◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

✍️ शब्दकार ©

🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

 पुरानों   को     पुरानी   याद,

अक्सर      आ  ही  जाती  है।

वही  बीते    दिनों   की  याद,   

रह - रह  कर   सताती    है।।


यों    ही    नहीं     ये     गाल,

गड्ढों      में      धँसे        मेरे।

यों    ही     नहीं     ये    बाल,

सन   वत        हुए       मेरे।।

ये   देखो     चाल   भी  मेरी,

मुझे  लड़खड़    चलाती  है।

पुरानों    को   पुरानी    याद,

अक्सर   आ   ही  जाती  है।।


चिकनी   चमकती  खाल थी ,

अब     तो        नहीं     मेरी।

ये  देह    भी   तो   लाल  थी ,

घन    श्याम      ने       घेरी।।

ये    ज़िंदगी     खुशहाल थी,

अब        बरगलाती         है।

पुरानों  को    पुरानी     याद ,

अक्सर     आ   ही जाती है।।


दृष्टि    अब     धुँधली     हुई,

क्या      देखना         बाकी!

कान    बहरे      हो        गए,

सुन - सुन   सबद    छाकी।।

जीभ   को   रसना  कहा है ,

रस   भर   ही     लाती   है।

पुरानों  को    पुरानी    याद,

अक्सर     आ   ही जाती है।।


मुख    बना      बे - दांत   ये ,

पर     पेट        भूखा     है।

यों  ही    निगलना  है   उसे,

दलिया    जो       रूखा है।।

आँत        बेचारी     परेशां,

भूखी     कुलबुलाती      है।

पुरानों  को    पुरानी   याद,

अक्सर   आ   ही  जाती है।।


फूल      खिलते     बाग   में,

तितली   आ   ही   जातीं  हैं।

जितने     मिलें     रस - बिंदु ,

वे   सब   पा   ही   जाती हैं।।

झड़    गए   अब   पात  सब,

पछुआ      नित   तपाती  है।

पुरानों  को     पुरानी     याद,

अक्सर   आ     ही जाती है।।


हर     समय    के     रंग नव ,

सबसे   अलग     ही     होते।

विगत   के     नर -    नारियाँ,

निज    ढंग      से       बोते।।

ज़िंदगी     अपनी         हवा ,

कुछ     यों      चलाती     है।

पुरानों     को    पुरानी  याद,

अक्सर   आ    ही  जाती है।।


देखते     क्या     हो   'शुभम',

दिल     होता     नहीं    बूढ़ा।

देह    तो     बस     वसन   है,

दह    कर      बने       रूढ़ा।।

आज   भी   दिल  की  कली,

फिर       मुस्कराती         है।

पुरानों    को    पुरानी   याद,

अक्सर    आ  ही  जाती  है।।


🪴 शुभमस्तु !


१६.०३.२०२१◆१२.४५पतनम मार्तण्डस्य।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किनारे पर खड़ा दरख़्त

मेरे सामने नदी बह रही है, बहते -बहते कुछ कह रही है, कभी कलकल कभी हलचल कभी समतल प्रवाह , कभी सूखी हुई आह, नदी में चल रह...