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✍️ शब्दकार©
🎊 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
मदमत्त सुवासित है फ़ागुन,
जड़ - चेतन को अति मनभावन,
कलियाँ उर , तरु की खिलतीं हैं,
लतिका लहरी है नव पावन।
-2-
रँग भर लाया मादक फ़ागुन,
रग - रग में छाई छवि पावन,
विरहिनि तरसी बिन पिया 'शुभम',
कब आएँगे मम प्रिय साजन।
-3-
फूलों को भँवरा चूम रहा,
रस चूस - चूस वह झूम रहा,
फ़ागुन का मास मद भरा है,
कहती कामिनि यह खूब रहा।
- 4 -
कब आओगे साजन मेरे,
दिन - रात अनंग मुझे घेरे,
शैया डसती है साँपिन - सी,
फ़ागुन में तपती बिन तेरे।
-5-
प्रिय ! होली आने वाली है,
कलियों की छटा निराली है,
फ़ागुन तड़पाता मुझे 'शुभम',
नित रात डराती काली है।
-6-
सब सखियाँ ताने देती हैं,
नित चिढ़ा मुझे रस लेती हैं,
फ़ागुन के दिन दस - पाँच शेष,
घर - बाहर रहती जेती हैं।
-7-
फ़ागुन में रंग बरसता है,
मन मेरा रोज़ तरसता है,
तुम कल का वादा करते हो,
तव बादल कहाँ सरसता है।
🪴 शुभमस्तु !
१९.०३.२०२१ ◆९.००आरोहणम मार्तण्डस्य।
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