मंगलवार, 9 मार्च 2021

पहचान [ मुक्तक ]


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✍️ शब्दकार ©

🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                  -1-

रविकर की  पहचान  ताप से,

मानव की  है  कर्म - माप  से,

सोम   रात   में   दे शीतलता,

संतति की   पहचान  बाप से।


                    -2-

सरिता   जल   देकर बहती है,

कल-कल कर  गाती रहती है,

देना  ही   पहचान   नदी  की,

मानव का   दूषण   सहती है।


                     -3-

वृक्ष   आदमी   को   फल देते,

नहीं  कभी  लेने   की  कहते,

देना ही   पहचान     बनाकर,

फलदाई जग   में   तरु   जेते।


                     -4-

धरती   की  पहचान   धीरता,

सैनिक  की  पहचान   वीरता,

मानव तुम   पहचान  बनाओ,

जल - प्रवाह   तैराक  चीरता।


                   -5-

सद  सुगंध  पहचान फूल की,

चुभना  ही  पहचान  शूल की,

बिना स्वार्थ जग को महकाता

कब प्रसून ने कभी  भूल की?


                      -6-

कर्मों   से    पहचान    बनाएँ,

दुष्कर्मों   से      बचें    बचाएँ,

छायादार विटप   से     सीखें,

जग को नित सुख ही पहुँचाएँ।


                        -7-

नारी  नर   से   क्यों   है भारी,

पत्नी, रमणी, जननि  हमारी,

विविध रूप   पहचान  बनाई,

'शुभम' ऋणी है दुनिया सारी।


🪴 शुभमस्तु !


०९.०३.२०२१◆८.४५आरोहणम मार्तण्डस्य।


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