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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
रविकर की पहचान ताप से,
मानव की है कर्म - माप से,
सोम रात में दे शीतलता,
संतति की पहचान बाप से।
-2-
सरिता जल देकर बहती है,
कल-कल कर गाती रहती है,
देना ही पहचान नदी की,
मानव का दूषण सहती है।
-3-
वृक्ष आदमी को फल देते,
नहीं कभी लेने की कहते,
देना ही पहचान बनाकर,
फलदाई जग में तरु जेते।
-4-
धरती की पहचान धीरता,
सैनिक की पहचान वीरता,
मानव तुम पहचान बनाओ,
जल - प्रवाह तैराक चीरता।
-5-
सद सुगंध पहचान फूल की,
चुभना ही पहचान शूल की,
बिना स्वार्थ जग को महकाता
कब प्रसून ने कभी भूल की?
-6-
कर्मों से पहचान बनाएँ,
दुष्कर्मों से बचें बचाएँ,
छायादार विटप से सीखें,
जग को नित सुख ही पहुँचाएँ।
-7-
नारी नर से क्यों है भारी,
पत्नी, रमणी, जननि हमारी,
विविध रूप पहचान बनाई,
'शुभम' ऋणी है दुनिया सारी।
🪴 शुभमस्तु !
०९.०३.२०२१◆८.४५आरोहणम मार्तण्डस्य।
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