सोमवार, 22 मार्च 2021

माता वीणावादिनी [ कुंडलिया ]


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✍️ शब्दकार©

🎸 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                        -1-

वीणा  वीणावादिनी,की बजती  चहुँ   ओर।

कविजी कविता कर रहे,दिवा निशा हर भोर।

दिवा निशा हर भोर,गूँजतीं सकल   दिशाएँ।

सदभावों के सुमन,महकते उर   को   भाएँ।।

'शुभम' सतत अभ्यास, बनाता पाहन मीणा।

बजने लगती मंजु, हृदय में माँ की    वीणा।।


                        -2-

माता   मेरी    शारदा,  ज्ञान स्वरूपा  नित्य।

गूँज रही  वीणा मधुर,शुभदा पावन  कृत्य।।

शुभदा पावन  कृत्य,रमा,कांता  शुभनामा।

दें आशिष वरदान, शिवा, सुरवंदित भामा।।

'शुभम'विश्वकल्याण,करें मैं निशिदिन ध्याता।

रहें  निरोगी  जीव,   प्रार्थना करता  माता।।


                        -3-

गूँजी  मेरी  शब्द स्वर,की वीणा  लय  साध।

कविता यों झरने लगी,गिरि से सरि   निर्बाध।

गिरि से सरि निर्बाध,सींचती उर  की धरती।

उगते भाव  विचार,देह को पावन    करती।।

'शुभं'सकल साम्राज्य,यही मम जीवन पूँजी।

मेरा जीवनकाल, धन्य जब वीणा   गूँजी।।


                        -4-

सुनता कवि वीणा मधुर,गूँज रही उर सृष्टि।

होती पल्लव फूल पर,अंबर से ज्यों    वृष्टि।।

अंबर से ज्यों वृष्टि,ओस झर झर कर झरती।

मिलते तरु को प्राण,मुदित हो मेधा  धरती।।

'शुभं'शब्द से रूप,काव्य का कवि ही बुनता।

बहरा वह नर-नारि,नहीं वीणा स्वर  सुनता।।


                          -5-

आओ  हम वंदन करें, पाने को सद   ज्ञान।

वीणावादिनि शारदा, करतीं कृपा  महान।।

करतीं कृपा महान,बजाकर वीणा अपनी।

ज्ञानप्रदा की माल,निरंतर हमको  जपनी।

'शुभम'शारदा मातु,चरण में नत  हो जाओ।

जय हो माँ का गान,करें सब मिलकर आओ


🪴 शुभमस्तु !


२२.०३.२०२१◆६.३० आरोहणम मार्तण्डस्य ।

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