शनिवार, 6 मार्च 2021

धीरज की प्रतिकृति [ मुक्तक ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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नदी   किनारे   क्यों   बैठी हो,

चिंता    में तुम     खोई -  सी।

हाथ टेककर  निज चरणों  में,

गम   के    मारे   रोई   - सी।।

जल में माटी ज्यों घुल जाती,

ऐसे  निज ग़म को    धो  दो,

देखो कुदरत  मौन   शांत है ,

नहीं  ईख   की   छोई - सी।।


नारी  धीरज की प्रतिकृति है,

सबको   शिक्षा    देती     है।

जीवन के  गम क्यों    तू ही,

अपने   सिर    पर  लेती है।।

प्रेरक तू  ही    मानवता  की,

नर  को   पाठ   पढ़ाती   है।

जाकर सरि में मुँह धो ले तू,

शीतलता  सुख  देती    है।।


जीवन   में आते  -  जाते हैं,

सुख -दुःख सबके साथ रहें।

जीना यही  सदा मानव का,

सरिता जलवत    सदा बहें।।

लाया कौन  कौन  ले  जाए,

धरा  यहीं   रह   जाता   है।

'शुभम' यही कहता हे नारी,

राम राम   बस   राम  कहें।।


सुख-दुःख अपने डाल ईश पर,

कर्मों    को   करते      रहना।

सब कुछ तो कर्ता   का  ही है,

जो   मिलता  है  सब सहना।।

अपनी शक्ति   निहारो  नारी,

तुम ही  हो   संसार    सबल,

कर्मों  पर अधिकार   तुम्हारा,

व्यर्थ अश्रु फिर क्यों बहना??


तुम ही   माता  जननी तुम ही,

अद्भुत  कृति   हो    हे  नारी।

तुमने ही   है   धैर्य   सिखाया,

 नर पर  सदा    नारि  भारी।।

तुम निराश यदि हो जाओ तो,

कैसे    बचना    है    नर को ।

तुमसे से ही है  सृजन   विश्व का,

'शुभम' पुष्प की तुम क्यारी।।


🪴 शुभमस्तु !


०५.०३.२०१३◆६.१० पतनम मार्तण्डस्य।

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