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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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मिलावट का जमाना है बड़ी रँगदार होली है।
मिले जो भी वही लूटो हुई उपहार होली है।
गधे की लीद जीरे में बना नकली यहाँ खोया,
नहींअसली कहीं इंसान की चमकार होली है
सजे पहले मुखौटे थे लगे उन पर मुसीके भी
सियासत की भरी बदबू ठगी बाज़ार होली है
दिखावट के लिए रिश्ते सभी ये मूँ जबानी हैं,
सभी को चाहिए तुर्शी हमें दुश्वार होली है।
न तू मेरा न मैं तेरा यही असली कहानी भी
समय पर काम आ जाए वही औजार होली है
भले भूखी मरे जनता वहाँ काला उजाला है
भले वैसे मिले कुर्सी वहीं दमदार होली है।
सियासत के अखाड़े में नहीं इंसाँ बचा कोई,
शुभं यशमैन जो कोई जमी शुभकार होली है
🪴 शुभमस्तु !
२७.०३.३०२१◆४.३०पतनम मार्तण्डस्य।
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