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✍️ शब्दकार ©
🌹 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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अब फिजाँ में रँग गुलाल है।
मन की होली का सवाल है।।
ध्यान उधर , क्या कोकिल कूजन?
मनश्चेतना का कमाल है।
अंदर रँग तो बाहर भी रँग,
वरना ये कोरा बबाल है।
कपड़ों का क्या रँगना बाहर,
ग़म का फैला जटिल जाल है।
बच्चों जैसा भोला हो 'गर,
यहाँ वहाँ सब जगह लाल है।
बुढ़वा में भी दिखता दिवरा,
धड़कन में 'गर नित जमाल है।
'शुभम' गले से तुझे लगा लूँ,
आ जा मत रख उर मलाल है।
🪴 शुभमस्तु !
२७.०३.२०२१◆६.४५पतनम मार्तण्डस्य।
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