बुधवार, 3 मार्च 2021

मत उड़े धरा से दूर🍃 [ गीत ]


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✍️ शब्दकार ©

☘️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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मत    उड़े   धरा  से  दूर मनुज,

अंबर     में      नहीं   बसेरा    है।

धरती   पर  ही  हैं   स्वर्ग -नर्क ,

धरती     पर    मिले    सवेरा है।।


अपनी  मर्यादा   लाँघ   कहाँ,

ऐ मानव !  तू    इतराता   है!

कर्तव्य    नहीं  करता  अपने,

अधिकार    माँगने  जाता है।।

जग  को   प्रकाश  देगा कैसे,

घर में जब  तम  का  घेरा है।

मत उड़े  धरा  से दूर  मनुज,

अंबर   में   नहीं   बसेरा  है।।


मेरा -  तेरा      रटते -    रटते ,

जीवन की  घड़ियाँ बीत रहीं।

शुभ  करने  को  तू आया था,

शुभता की  गागर  रीत रहीं।।

मानव से  दानव  बना  हुआ,

क्यों  तू  दानव   का  चेरा है।

मत  उड़े धरा  से  दूर मनुज,

अंबर  में   नहीं    बसेरा   है।।


मानव -जीवन के धर्म - कर्म,

मानव को  नित्य जरूरी  हैं।

देकर तनाव   जो   जीता  है,

उसकी हर  चाह  अधूरी है।।

मिलती भाग्यों से मनुज देह,

तेरा   भूतों  - सा   फेरा    है।

मत  उड़े  धरा  से दूर  मनुज,

अंबर   में    नहीं  बसेरा  है।।


जो   आते     हैं   वे   जाते  हैं,

पर कुछ  ही   नाम कमाते हैं।

कुछ जौंक कीट मच्छर बनकर,

जीवन को   वृथा  गँवाते  हैं।।

जो  बीज  आम  का बोता है,

खाता   फ़ल   वही घनेरा  है।

मत  उड़े  धरा  से दूर  मनुज,

अंबर में   नहीं   बसेरा    है।।


जीवन  देते    हैं  मात - पिता,

उनका  सम्मान  नहीं  करता।

वह  देह  धारकर  मानव  की,

पशु, कीट यौनि में ही मरता।।

शुभचिंतक जिनको मान रहा,

वह  कभी   न  होना  तेरा  है।

मत   उड़े  धरा  से दूर मनुज,

अंबर   में   नहीं   बसेरा  है।।


करनी  को   धोखा  क्या देगा,

परिणाम उसी का मिलना है।

देता सुगंध  वह   सुमन यहाँ,

जिसको  क्यारी में खिलना है।।

आशा   क्या   फूल  धतूरे  से,

कहलाता   सदा   धतेरा    है।

मत उड़े  धरा  से   दूर  मनुज,

अंबर   में   नहीं   बसेरा   है।।


कुछ   देश- धर्म  भी  होता है,

इसकी  तुझको पहचान नहीं।

कुत्ते   भी  भरते  पेट    सभी,

इससे  तो तू अनजान  नहीं।।

उसका भी भज ले नाम 'शुभम',

जो जग   का एक  चितेरा है।

मत उड़े धरा  से  दूर  मनुज,

अंबर में   नहीं    बसेरा   है।।


🪴 शुभमस्तु !


०३.०३.२०२१◆५.३०पतनम मार्तण्डस्य।

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