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✍️ शब्दकार ©
🌳 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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आता है जिसको बहाना पसीना।
बना उसका जीवन जहाँ में नगीना।।
बहाना बनाना दग़ा सबको देना ,
नहीं जिंदगी का डुबाना सफ़ीना।
हज़ारों तरह के यहाँ फूल खिलते,
सभी का अलग हमने जाना क़रीना।
कभी डाह से जिंदगी क्या सँवरती,
नहीं खुद को अपने जलाना हसीना।
खिलें बागवाँ में नई रोज कलियाँ ,
जिंदगी को नरक तुम बनाना कभी ना।
पता है कभी काम आता है तिनका,
अपने बड़ों को न ठुकराना जीना।
'शुभम' जिंदगी की खुली रख किताबें,
रहे रोज तेरा तराना नवीना।
🪴 शभमस्तु!
०७.०३.२०२१◆१.००पतनम मार्तण्डस्य।
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