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✍️ शब्दकार©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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पानी को नित व्यर्थ बहाते।
फिर भी जन मानव कहलाते।।
बूँद - बूँद से भरती गागर।
भर जाते हैं सातों सागर।।
पशु से भी बदतर बन जाते।
पानी को नित व्यर्थ बहाते।।
किया प्रदूषित भू का पानी।
जल - दूषण की अजब कहानी।।
समर चला कर कूद नहाते।
पानी को नित व्यर्थ बहाते।।
नगर पालिका की बीमारी।
नल से चले खुली जल धारी।।
सूकर कूकर लोट लगाते।
पानी को नित व्यर्थ बहाते।।
टूटी टोंटी कौन लगाए?
नेता जी बचकर के जाएँ।।
फोटो खड़े उधर खिंचवाते।
पानी को नित व्यर्थं बहाते।।
लोटें भैंसें, भैंसे, गायें।
पानी बढ़ - चढ़ कर फैलायें।।
टोकें 'शुभम' मूढ़ कहलाते।
पानी को नित व्यर्थ बहाते।।
🪴 शुभमस्तु !
२२.०३.२०२१◆५.४५पत नम मार्तण्डस्य।
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