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✍️ शब्दकार ©
🪴 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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दूध, तेल,मिष्ठान्न में, करें मिलावट रोज़।
असली के सपने बचे,कैसे आए ओज।।
धन्य किया धनिया शुभं, मिला अश्व की लीद
हल्दी में रँग जो मिला , हम हो गए मुरीद।।
मूँग, उर्द,अरहर सभी,पत्थर के शौकीन।
चर्बी सिकीं जलेबियाँ , बिगड़े चाहे दीन।।
शुद्ध दूध जब भी पिया,हुआ हाजमा ध्वस्त।
ले कर लोटा दौड़ते, शुरू हो गए दस्त।।
मिलावटी खाया पिया,संतति है कमज़ोर।
आई पीढ़ी सामने, आज मिलावटखोर।
हया हिये से है हवा, मानव नाटकबाज।
राजनीति जब से घुसी,बदल गया सब साज।
गाय,भैंस पालें नहीं, पा लें पाउडर तेल।
जादूगर इस देश के , दिखा रहे हैं खेल।।
खोया खोया भीड़ में, मैदा के मैदान।
तेल परिष्कृत को मिला,करता है अहसान।।
खाया जब से जहर को,जहरी है इंसान।
कंठ नहीं नीला पड़ा, पचा बना भगवान।।
असली की उम्मीद तो,करना दो अब छोड़।
लगा मुखौटे आदमी,नित्य निकाले तोड़।।
वरद हस्त नेता खड़े,कुछ भी कर लो मीत।
'शुभम'झूठ कहता नहीं,होगी तेरी जीत।।
🪴 शुभमस्तु !
१५.०३.२०२१◆६.३० पत नम मार्तण्डस्य।
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