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✍️ शब्दकार©
🪦 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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धारण जो करती हमें,धरती धरणी नाम।
रत्नवती,अचला,मही,वही हमारा धाम।।
धरती से ही अन्न है,धरती से फल फूल।
धीरज धरती -सा नहीं,इसे न जाना भूल।।
महाभूत में तत्त्व जल, जीवन का पर्याय।
मरे न आँखों का कभी,करना उर से न्याय।।
मेघ दत्त जल भूमि पर,आया जलज महान।
लिप्त नहीं जल से कभी, जग में ऊँची शान।
हरिताभा नीकी लगे,नयनों को अभिराम।
हरियाली तरु सोहती, जग सौंदर्य ललाम।।
हरियाली सुख शांति का,नीका प्रवर प्रतीक
पक्षी, तरु क्रीड़ा करें,बड़ी पुरानी लीक।।
अंबर में उड़ते कभी, कभी बैठ तरु डाल।
पक्षी प्रभु की सृष्टि में,करते प्रकृति निहाल।।
कोकिल पक्षी कुंज में, कूके जब मसधुमास।
तोता, चातक, मोर खग,रहते अपने पास।।
हुआ प्रदूषण सृष्टि में,मानव कारक बीज।
अपना काम निकालकर,फैलाता है चीज।।
पंच तत्त्व दूषित किए, भरा प्रदूषण रोज़।
पत्तल फेंकी राह में,भैसों जैसा भोज।।
धरती,जल, पक्षी सभी, हुए प्रदूषित मीत।
हरियाली मुरझा रही,'शुभं' न समझें जीत।
🪴 शुभमस्तु !
२५.०३.२०२१◆११.३०आरोहणम मार्तण्डस्य।
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