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✍️ शब्दकार©
🌷 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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गुल,गुलाल,चंदन, रँग, रोली।
आओ खेलेंगे हम होली।।
पीपल की कोंपल शरमाती।
सरसों की कलियाँ पियराती।
कोयल की मादक -सी बोली।
आओ खेलेंगे हम होली।।
झाड़ी में गुलाब मुस्काए।
खेतों में गेहूँ लहराए।।
तड़क उठी अँगना की चोली।
आओ खेलेंगे हम होली।।
भौंरे चूम रहे कलियों को।
जगा रहे नर रँगरेलियों को।।
शरमाती नारी अनबोली।
आओ खेलेंगे हम होली।।
बच्चे लिए हाथ पिचकारी।
गलियों में भरते किलकारी।।
कलियों ने निज चोली खोली।
आओ खेलेंगे हम होली।।
देख मटर को चना नाचता।
मानो काम-पुराण बाँचता।।
धरती खड़ी खोलकर झोली।
आओ खेलेंगे हम होली।।
ठूँठों में है यौवन आया।
आम अरुण होठों मुस्काया।।
किसने उसकी खुशियाँ तोली।
आओ खेलेंगे हम होली।।
नीला अंबर भू पर छाया।
काम-राग में गाता पाया।।
'शुभम'भाँग की खाकर गोली
आओ खेलेंगे हम होली।।
🪴 शुभमस्तु !
०१.०३.२०२१◆१२.४५ पतनम मार्तण्डस्य।
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