◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●
✍️ शब्दकार©
🎊 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●
फ़ागुन आया! फागुन आया।
होली का मौसम मनभाया।।
पापा लाएँगे पिचकारी।
भाभी की रँग देंगे सारी।।
लाल गाल कर रँग दें काया।
फ़ागुनआया ! फ़ागुन आया।।
आओ रामू श्यामू आओ।
पिचकारी में रँग भर लाओ।।
दादी ने गुलाल लगवाया।
फ़ागुन आया !फ़ागुन आया।।
अम्मा बना रही है गुजिया।
रसगुल्ले सँग पीली भुजिया।।
भाभी ने मोदक खिलवाया।
फ़ागुन आया!फ़ागुन आया!!
फोड़ें रंग भरे गुब्बारे।
टेसू के रँग के फव्वारे।।
नहीं रसायन है मिलवाया।
फ़ागुन आया !फ़ागुन आया!!
गले मिलें फिर खेलें होली।
बोलें नहीं नीम-सी बोली।।
'शुभं'आज का समय सुहाया।
फ़ागुनआया! फ़ागुन आया!!
🪴 शुभमस्तु !
०१.०३.२०२१◆१२.१५ पतनम मार्तण्डस्य।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें