बुधवार, 31 मार्च 2021

होली गई 🫒 [ बालगीत ]

 

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✍️ शब्दकार ©

🫒 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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होली  गई    पके     हैं   होले।

बौरों  में  हैं   सजे   टिकोले।।


गेहूँ ,जौ  पक   गए   खेत  में।

नहा  उठे  हैं  कीर   रेत   में।। 

गौरैया    चूँ - चूँ    कर   बोले।

होली  गई   पके   हैं    होले।।


काँटों  में   गुलाब  महके   हैं।

भौंरे   झूम - झूम    बहके हैं।।

बोल पिड़कुली निंदिया खोले

होली  गई   पके    हैं   होले।।


झनकारीं सरसों की फलियाँ।

शहतूतों की महकी डलियाँ।।

महके   महुआ  होले  - होले।

होली  गई   पके   हैं   होले।।


मेला  फूलडोल   का  भारी।

मास्क लगाए  हैं नर- नारी।।

झूले   चरर- मरर  चूँ   बोले।

होली  गई   पके   हैं    होले।


खुला  नहीं   मेले  में   खाना।

कोरोना   से   बचें ,  बचाना।।

लालच  में क्यों  रसना  डोले।

होली   गई   पके  हैं    होले।।


🪴  शुभमस्तु !


३०.०३.२०२१◆६.३० पतनम मार्तण्डस्य।


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