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✍️ शब्दकार ©
🫒 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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होली गई पके हैं होले।
बौरों में हैं सजे टिकोले।।
गेहूँ ,जौ पक गए खेत में।
नहा उठे हैं कीर रेत में।।
गौरैया चूँ - चूँ कर बोले।
होली गई पके हैं होले।।
काँटों में गुलाब महके हैं।
भौंरे झूम - झूम बहके हैं।।
बोल पिड़कुली निंदिया खोले
होली गई पके हैं होले।।
झनकारीं सरसों की फलियाँ।
शहतूतों की महकी डलियाँ।।
महके महुआ होले - होले।
होली गई पके हैं होले।।
मेला फूलडोल का भारी।
मास्क लगाए हैं नर- नारी।।
झूले चरर- मरर चूँ बोले।
होली गई पके हैं होले।
खुला नहीं मेले में खाना।
कोरोना से बचें , बचाना।।
लालच में क्यों रसना डोले।
होली गई पके हैं होले।।
🪴 शुभमस्तु !
३०.०३.२०२१◆६.३० पतनम मार्तण्डस्य।
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