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✍️ शब्दकार ©
🕺🏻 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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कहो न कोई और हैं!
हम सभी चोर हैं,
कभी किया आपने गौर है?
ये चोरों का दौर है,
पर दूसरों को
हम बतला रहे चोर हैं!
कोई है बड़ा कलाकार,
कोई बन रहा है
बड़ा ही ईमानदार!
कोई सज्जनता का
वास्तुकार,
बड़ा ही कौशल है
उसमें करने का चौर्य कार्य,
अकुशल चोर है वह
जो कर रहा है
बलात कार्य ,
छीन -झपट कर
ये शिरोधार्य !
निष्कर्ष है मात्र यही!
विद्वान विदुषियों
विदूषकों रक्त चूषकों ने
बात सत्य ही कही:
अंततः सब बेईमान
हम सभी हैं समान,
सबका भले मत हो
सम्मान समान,
चाहे वह दुकानदार है,
चलाने वाला देश का हर नेता
जो कहलवाता सरकार है,
अधिकारों का दुरुपयोग
कर रहा अधिकारी दुधार है,
देश का अन्नदाता
जहर को खिलाता
फिर भी
किसान महान है,
भैंस का दूध बेचता
मिला- मिला कर पानी
दूधिया जवान है ,
गधे की लीद को
धनिया बना रहा
जादूगर,ये जुगाड़ है,
पुलिसिया वर्दी का
रौब दिखाता
चौराहे पर खड़ा
डंडावान है,
कचहरी से लेकर
सचिवालय तक का
बाबू है,
जिसके बिना पूरी
शासन व्यवस्था बेकाबू है,
अल्ट्रासाउंड, एक्सरे,
रक्त,मूत्र जाँच में लगा
कमीशनखोर चोर,
भगवान का रूप डॉक्टर है,
जिधर भी नज़र पड़ती है
एक से एक बढ़कर है।
सभी भोक्ता हैं,
सभी कर्ता हैं,
कर्ता को लड़ना ही है,
लड़ना कभी
नैतिक भी नहीं है,
धार्मिक भी नहीं है,
भोक्ता को तो
परग्रीवा करनी है ही
भंजन,
इसलिए मित्रता
नहीं कहीं भी,
सब झूठ ,बकवास,
पाखंड और धोखा है,
भला किसी ने किसी को
धोखा करने से रोका है?
जिसे जब भी
मिले मौका है,
उसका रास्ता
किसी ने कभी रोका है?
न संस्कृति है कुछ,
नहीं सभ्यता है कुछ,
लुभावना वार्तालाप,
मात्र वार्तालाप,
जिसके नीचे
अपने समीपस्थ की
ग्रीवा -कतरन का
क्रिया कलाप!
सभी सबके शत्रु हैं,
कोई भी नहीं मित्र है,
यही तो आज
देश -दुनिया का चित्र है,
हर आदमी का चरित्र है।
जी हाँ,
अपने -अपने हुनर में
माहिर
हम सभी चोर हैं।
नहीं कुछ और हैं।
🪴 शुभमस्तु !
२४.०३.२०२१◆२.४५पतनम मार्तण्डस्य।
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