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✍️ शब्दकार ©
🎋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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-1-
लौकी में सूई चुभी, देखें रातों रात।
पूर्ण शुद्धता की करें,जनघाती मधु बात।।
जनघाती मधु बात,कृषक हैं कितने भोले!
विष का देते सेंट , यही अब विष के गोले।
'शुभम'भाड़ में आज,गई होली की चौकी।
टिंडा रँग में डाल,खिलाते विष की लौकी।।
-2-
खोजा मैंने देश भर, मिले एक भी नेक।
जिधर दृष्टि मेरी गई,देखे केवल भेक।।
देखे केवल भेक, टर्र ही टर्र मचाते।
नेता पा अधिकार ,देश दिन- रात चबाते।।
जिसका जो भी काम, 'शुभं'रखता है रोज़ा।
सब मिल खाते देश,शहर गाँवों में खोजा।।
-3-
देखा मैंने गाँव में, भोला बहुत किसान।
दोहनी में पानी मिला, दुहता भैंस महान।।
दुहता भैंस महान ,क्रीम खींचे हलवाई।
पीते जहरी दूध, रो रहे लोग - लुगाई।।
'शुभम' न लज्जा शेष,नहीं माथे पर रेखा।
दाता अन्न महान, गाँव में मैंने देखा।।
-4-
कहता सुत बीमार है, घरवाली बीमार।
मिला यूरिया दूध में,पशु- पालक लाचार।।
पशु - पालक लाचार, नीर का लेता पैसा।
बीमारी का धाम , बना है उसका ऐसा।।
'शुभम'माँगता रोग,लाख का झटका सहता।
मेरा कृषक महान, दूध से धुलकर रहता।।
-5-
कैसे भव - बाधा मिटे, मानव बे - ईमान।
मंदिर में माथा घिसे,विष ही उसकी शान।
विष ही उसकी शान, दूध,फल,शाक विषैले।
चाहे खाएँ आम, संतरा, नीबू , केले।।
'शुभम' फेरते माल, भक्त गण ऐसे - ऐसे।
गुंडा,चोर, लबार, मिटे भव- बाधा कैसे।।
🪴 शुभमस्तु !
१७.०४.२०२१◆११.००आरोहणम मार्तण्डस्य।
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