बुधवार, 17 मार्च 2021

मेरा कृषक महान🌾🎋 [ कुंडलिया ]

  

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✍️ शब्दकार ©

🎋 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

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                         -1-

लौकी  में   सूई    चुभी,  देखें रातों    रात।

पूर्ण शुद्धता की करें,जनघाती मधु   बात।।

जनघाती मधु बात,कृषक हैं  कितने  भोले!

विष का देते सेंट , यही अब विष  के  गोले।

'शुभम'भाड़ में आज,गई होली  की  चौकी।

टिंडा रँग में डाल,खिलाते विष  की लौकी।।


                           -2-

खोजा  मैंने  देश भर, मिले एक  भी  नेक।

जिधर  दृष्टि  मेरी  गई,देखे केवल   भेक।।

देखे   केवल   भेक,  टर्र  ही  टर्र     मचाते।

नेता  पा  अधिकार ,देश दिन- रात चबाते।।

जिसका जो भी काम, 'शुभं'रखता है रोज़ा।

सब मिल खाते देश,शहर गाँवों में खोजा।।


                            -3-

देखा  मैंने   गाँव में,  भोला बहुत   किसान।

दोहनी  में पानी मिला, दुहता भैंस  महान।।

दुहता  भैंस   महान ,क्रीम खींचे   हलवाई।

पीते  जहरी  दूध, रो  रहे  लोग  -  लुगाई।।

'शुभम' न  लज्जा शेष,नहीं माथे पर रेखा।

दाता  अन्न   महान,  गाँव   में मैंने   देखा।।


                          -4-

कहता   सुत  बीमार है, घरवाली   बीमार।

मिला  यूरिया दूध में,पशु- पालक   लाचार।।

पशु - पालक  लाचार, नीर का लेता  पैसा।

बीमारी  का  धाम , बना है उसका    ऐसा।।

'शुभम'माँगता रोग,लाख का झटका सहता।

मेरा  कृषक  महान,  दूध से धुलकर रहता।।


                          -5-

कैसे   भव - बाधा  मिटे, मानव बे - ईमान।

मंदिर   में माथा घिसे,विष ही उसकी शान।

विष ही उसकी शान, दूध,फल,शाक विषैले।

चाहे  खाएँ    आम,   संतरा, नीबू ,   केले।।

'शुभम'  फेरते   माल, भक्त गण  ऐसे - ऐसे।

गुंडा,चोर, लबार,  मिटे  भव- बाधा  कैसे।।


🪴 शुभमस्तु !


१७.०४.२०२१◆११.००आरोहणम मार्तण्डस्य।

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