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✍️ शब्दकार ©
🏕️ डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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शर्बती आँखों के हम मारे हुए हैं।
चाँद से हम टूट कर तारे हुए हैं।।
देखते ही पलक झुक जातीं हमारी,
भव्य तव सौंदर्य से हारे हुए हैं।
भार यौवन का उठाते भाग्यशाली,
इस हेतु ही हम देह को धारे हुए हैं।
आँसुओं को जिंदगी भर हमने पिया,
इसलिए तन मन सभी खारे हुए हैं।
देह में कचनार की कलियाँ उगी हैं,
फूल खिलने को 'शुभम' प्यारे हुए हैं।
🪴 शुभमस्तु !
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