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✍️ शब्दकार ©
🎊 डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'
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फ़ागुन का हर रंग निराला।
पिया- तिया सत संग निराला।
ढप ढोलक से कहता आ जा,
देख बजा मृदंग निराला।
पिक - स्वर सुना आम बौराया,
नाचा काम - कुरंग निराला।
मृग - नयनी के नयन नशीले,
ब्रज का हृदय - हुरंग निराला।
डम डम, डम डम, डिमिक डमा डिम,
बजता मर्दित चंग निराला।
काजल लगा रही देवर के,
भौजी का हर ढंग निराला।
लाल महावर देवर के पद,
होली का रस रंग निराला।
🪴 शुभमस्तु !
१४.०३.२०२१◆२.३० पतनम मार्तण्डस्य।
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